किसान भाइयों औषधि और सुगंधित फसलों की खेती से हम अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं लेकिन इसमें हमें बहुत सारी बातों का पता होना चाहिए जैसे कि सुगंधित फसल या औषधि फसल दोनों में से
किसका चयन हमें करना है।
हमारे खेत की मिट्टी, जलवायु, पानी की उपलब्धता, बारिश कितनी होती है, इन प्रमुख बातों को ध्यान में रखते हुए ही इस क्षेत्र में हमें कदम रखना चाहिए। मेंथा जिसे आम बोलचाल की भाषा में पिपरमेंट भी कहा जाता है की खेती सुगंधित तेल के लिए की जाती है। इसलिए आवश्यक है कि पत्तियां तोड़ने के बाद इन पत्तियों से तेल निकालने के लिए डिस्टलेशन प्लांट भी जरूरी होता है
कई बार कुछ किसान भाई इसकी खेती में इसलिए भी घाटे में आ जाते हैं कि सही समय पर पत्तियों से तेल निकालने की प्रक्रिया को समय पर पूरा नहीं कर पाते, दूसरा कम रकबे वाले किसान डिस्टलेशन प्लांट का खर्चा वहन नहीं कर पाते हैं। और अंत यह जब नुकसान हो जाता है तब फसल बदनाम होती हैऔर फिर धीरे-धीरे करके किसानों में यह बात घर कर जाती है कि इसकी खेती घाटे का सौदा है जबकि वास्तव में ऐसा नहीं होता है हमें अपनी पूरी तैयारी के साथ इस क्षेत्र में आना चाहिए।
वैसे ज्यादा अच्छा होगा की एक गांव में एक से अधिक किसान मिलकर इस खेती में आगे बढ़े ताकि सभी किसानों के खेतों की पत्तियों का डिस्टलेशन एक स्थान पर हो जाए सभी किसान अपना थोड़ा-थोड़ा सहयोग देकर डिस्टलेशन प्लांट की स्थापना कर सकते हैं।
और इसमें शासकीय मदद भी मिल सकती है।
औषधि और सुगंधित फसलों से जुड़े संस्थानों के एक्सपर्ट्स की माने तो मेंथा की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. अच्छी उपज के लिए पर्याप्त जीवांश पदार्श, अच्छा जल निकास वाली मृदा में इसकी खेती की जा सकती है... हां जिस खेत की बलुई दोमट और मटियारी दोमट मृदा का पी-एच मान 6-7.5 हो इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती है। क्योंकि इस में जड़ों समुचित विकास नहीं हो पाता है। मेंथा की बुआई करने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार करने के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से 2 से 3 बार गहरी जुताई से पहले 15 से 20 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। दीमक से बचाव के लिए 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से नीम की खली मृदा में मिलाई जाती है. खेत तैयार होने के बाद खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बांट देना चाहिए. इससे सिंचाई खर्च में कटौती होती है।
मेंथा की रोपाई का सही समय ठंड की समाप्ति से लेकर गर्मी के मौसम की शुरुआत होता है. भारत में मध्य जनवरी से मध्य फरवरी तक का समय मेंथा की बुआई के लिए सर्वोत्तम है। जहां रबी की फसल लगाई जाती है, वहां पर रबी की फसल की कटाई के बाद मार्च खत्म होते तक जापानी पुदीना की बुआई की जा सकती है. मेंथा की तीन प्रमुख प्रजातियां हैं- जापानी पुदानी, पहाड़ी पुदीना और विलायती पुदीना.
वैसे तो मेंथा यानी पिपरमेंट की फसल पर बहुत ज्यादा कीट प्रकोप नहीं देखा गया है फिर भी एक कीट है
जिसे बालदार सुंडी कहा जाता है
बालदार सूंडी- यह पत्तियों की निचली सतह पर रहकर पत्तियों को खाती है, जिससे तेल की प्रतिशत मात्रा कम हो जाती है. इस कीट से फसल की सुरक्षा के लिए डाइक्लोरवॉस 500 मिली या फेनवेलरेट 750 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 600-700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए. पत्ती लपेटक कीट- इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 ईसी 1.0 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600-700 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए
मेंथा फसल की कटाई दो बार की जाती है. पहली कटाई बुआई के लगभग 100-120 दिनों बाद और दूसरी कटाई, पहली कटाई के लगभग 70-80 दिनों बाद करनी चाहिए. पौधों की कटाई जमीन की सतह से 4-5 सेमी ऊंचाई से करनी चाहिए. कटाई के बाद पौधों को 2 से 3 घंटे तक खुली धूप में छोड़ देना चाहिए. इसके बादा छाया में हल्का सुखाकर आसवन विधि द्वारा तेल निकाल लिया जाता है. इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 250-300 क्विंटल शाक या 125-150 किग्रा तेल मिलता है.
कृषक ग्राम वेबसाइट में प्रसारित व उपलब्ध की गई सभी जानकारियां यानि आलेख, वीडियो, ऑडियो की सामग्री विषय विशेषज्ञों द्वारा प्राप्त की गई है इसके लिये संपादक की सहमति या सम्मति अनिवार्य नहीं है। इसके प्रसारण में संपूर्ण सावधानियां बढ़ती गई हैं फिर भी भूलवश यदि कोई त्रुटि हो इसके लिए किसी भी प्रकार का दावा स्वीकार नहीं किया जाएगा। सभी से यह निवेदन किया जाता है कि वेबसाइट में दी गई किसी भी सामग्री के उपयोग से पूर्व एक बार अपने निकट के विषय वस्तु विशेषज्ञों से अवश्य परामर्श कर लें।
Copyright © 2024 Krishakgram All Rights Reserved.